रविवार, 5 नवंबर 2017



“आरज़ूएँ भी रास्तों जैसी होती हैं
अपने अनगिनत मोड़ों से ज़िंदगी को घूमाती रहती हैं ।”
°°°
कई बार कोशिश करने के बाद भी वह हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था । वह नज़रें उठाता , तस्वीर की ओर देखता और वापस नज़रें झुका लेता । दो मिनट सोचता और पहले से बनाया हुआ व्हिस्की का पैग होठों से लगाकर अंदर कर लेता। फिर सिर को सोफ़े की पुश्त से लगाकर आँखें बंद कर लेता । ऐसा वह पिछले आधे घंटे से कर रहा था । इस कोशिश में वह आधा ख़त्म कर चुका था । वह ऐसी कोशिश पिछले रात से ही कर रहा था और देर रात तक करता रहा था । लेकिन, सफल नहीं हो पाया । सुबह जागने के बाद से वह फिर उसी कोशिश को दुहरा रहा था । उसे ज़ल्दी-से निकलना भी था । उसके दोस्त और रति आ भी चुके थे । उसने घूमती आँखों से देखा, नौ बजने ही वाले थे । उसने तस्वीर से झाँकती पिता की ओर फिर से देखा... गिलास हाथ में उठाते हुए उसके हाथ काँप रहे थे ...।  आख़िर पिता से आँख मिलाये भी तो कैसे... !
°°°
कोई बारह साल पहले उसने तय किया था कि टिना के बाद वह और किसी से प्यार नहीं करनेवाला । उसने बताया था, कि ऐसा किसी मोहब्बत के अंधे ज़ुनून में तय नहीं किया गया था । उसे लड़कियों से नफ़रत हो गयी थी...ज़िंदगी बेज़ार बन गयी थी ....या मोहब्बत का दर्द बहुत ज़्यादा था...दिल ऐसा टूटा था कि दोबारा जुड़ना सम्भव ही नहीं था , ऐसा भी नहीं था । बस उसने तय कर लिया था। उसे ऐसे झंझट में फिर से पड़ना पसंद नहीं था, बस । देखा जाए तो दूनिया की इतनी बड़ी विविधताओं में उसके फ़ैसले का एडजस्ट हो जाना कोई बड़ी बात भी नहीं थी । गिने-चुने मित्रों और परिवार वालों के अलावा और किसके कानों पे ज़ूएँ रेंगतीं ! वैसे भी 21वीं शताब्दी का कुछ तो असर होना ही चाहिए था। एक बंदा जो प्यार का मारा हो उसे इतनी तो आज़ादी होनी ही चाहिए कि वो एक जनम कुँवारा रह सके । सबने उसके फ़ैसले को क़ुबूल कर लिया , सिवाय उसके पिता के । पर एक अकेला पिता प्रेम में ठुकराये हुए प्रेमी के सामने कब तक टिकते । वो भी नये ज़माने के ही आदमी थे , जानते थे - पगलाया हुआ हाथी और आवारा आशिक़ क़ाबू में नहीं आते हैं ज़ल्दी । समय के हिसाब से सुधरा तो ठीक वरना भगवान मालिक !
बीच – बीच में पिता अपनी ममता से मज़बूर बेटे को मज़बूर करने की कोशिश करते रहे , लेकिन बेटे ने मज़बूर न होने की ठानी थी , कैसे मानता । नतीज़ा यह हुआ कि पिता खुद उमर के हाथों मज़बूर हो एक दिन दुनिया से उठ गये । हाँ , यह भी जानना होगा कि उसकी माँ तो पहले ही स्वर्गवासी हो गयी थी । कुछ इंसानों में ज़िद वाला कीड़ा ज़्यादा ही हलचल मचाता रहता है । सामने से अगर कोई बोलने वाला , समझाने वाला हो तो और ज़्यादा । उसकी भी कुछ ऐसी स्थिति थी । जब तक पिता समझाते रहे , यार दोस्त मनाते रहे उसने ज़्ररा भी ध्यान नहीं दिया । आख़िर वक़्त भी कब तक इंतज़ार करता । दनादन दस-बारह साल गुज़र गए ।
इन गुज़रते सालों ने उसके जिस्म पर अपने कई निशान छोड़ दिए थे। मसलन, आँखों के नीचे की त्वचा में दिखने लायक सिकुड़न आ चुकी थी , चेहरे पर हल्की छाइयाँ जम गयीं थीं और कभी काले रहे बालों में सफ़ेदी के अनगिन रेशे बहुमत से झाँकने लगे थे । 
सर के बाल तक तो फिर भी ठीक थे , पर जब मूँछों पर सफ़ेदी मिक्स करता हुआ समय उसकी छाती पर भी अपना ब्रश फेरने लगा तो फिर घबराया हुआ वह अपने दिल-दिमाग़ से टिना-प्रकरण के बाद वाली स्थितियों की तह तक जाने की बात पहली बार सोचने लगा । अन्तत: काफ़ी गहन सोच-विचार के बाद उसने  अपनी भीष्म-प्रतिज्ञा की दोबारा समीक्षा करने की सोची । कारण का तो ठीक-ठीक पता नहीं पर शायद ऐसा हुआ होगा कि धीरे –धीरे वक़्त बीतकर जब वर्षों में जमा होने लगा हो , उम्र हाथ से फ़िसलने लगी हो और अकेलेपन की तेज़ गर्मी जब ज़िद की बर्फ भी पिघलाने लगी हो , तो उसने हाथ- पैर मारना शुरु कर दिया होगा । 
°°°
डूबते को तिनके का सहारा । यहाँ तो किनारे पर कितने लोग खड़े थे उसे अपनी तरफ़ हाथ बढ़ा कर खींचने को। यार राज़ी है ब्याह रचाने को, यह बात बिना लाउडस्पीकर के ही गली – मोहल्ले से निकलकर हर तरफ़ फैल गई। साईड हो गये दोस्तों ने फिर से उसकी ज़िंदगी बसाने का ज़िम्मा उठाया । अनुभवी दोस्त थे , दुनिया देखे हुए । आख़िर रास्ता निकाल ही लाये । रास्ता थी रति। 
रति वैसे तो 30 साल की ही थी पर एक प्रॉब्लम की मारी हुई थी । प्रॉब्लम क्या प्यार की ही मारी हुई थी । १४ साल की उम्र में इश्क़ कर बैठी थी । इश्क़ भी ऐरा-गैरा, नत्थू – खैरा वाला नहीं , मरने –मारने वाला , बल्कि यूँ कहिये , सबकुछ छोड- छाड़कर भाग जानेवाला । बाद में 25 साल की रती को जब ट्रेन के नीचे जाते समय संजोग से पकड़ लिया गया तो पता चला वह तीन बच्चों की माँ भी है । जगह दिल्ली थी । आगे पता चला , कि 5 साल पहले उसका प्रेमीपति बिना बताये भाग गया था । तब से वह अपनी मुक्ति का ही इंतज़ार कर रही थी । मुक्ति तो मिली नहीं , पर हाँ कुछ समाजसेवी संस्थाओं की सहायता से वह फिर से अपनी ज़िंदगी को जीने के लिए तैयार हो गयी । 
 दोस्तों ने रति को उसके पास लाने का फ़ैसला किया। आधे घंटे और कैफ़े कॉफ़ी डे की आधी कॉफ़ी ख़त्म होते – होते दोनों ने मुस्कुरा कर बाहर इंतिज़ार कर रहे यारों को सिग्नल दे दिया। जब दोनों ने सहमती दे दी तो दोस्त लोग समझ गये कि दोनों को अकेलेपन से मुक्ति मिल गयी है । तुरन्त ही मंगनी की रस्म पूरी हुई और केक कटिंग सेलिब्रेशन के बाद आज की तिथि तय कर दी गई । यह महीने भर पहले की बात है। 
°°°
उसने पिता की तस्वीर को अपने मोटे शीशे वाले चश्मे के पीछे से देखा । पाँच मिनट तक देखता ही रहा । फिर टेबल पर रखी रती की तस्वीर उठाकर एक नज़र देखा और उठ खड़ा हुआ । दस सेकेंड तक अपनी चढी हुई आंखों को फोकस पर वापस लगाया और बोला – 
    “हाँ , शर्मिंदा हूँ मैं ...पर हँसो मत...बारह साल बाद ही सही पर अकल आयी तो । अब जबकि अकल आ गयी है तो क्या मैं शर्मिंदा होने के डर से , आपसे आंखे मिलाने के डर से बैठा रहूँ यूँ ही । उमर देखी है मेरी , 45 का हो गया हूँ मैं । सारे दोस्त-यार के बच्चे सायकल छोड़कर बाईक पर बैठने लगे हैं ...और मैं हूँ कि ...। अरे टिना भी दो बड़े बच्चों की माँ बन गयी अब, और कितना इंतज़ार करूँ उ..स..का...। 
वह बोलते-बोलते रुक गया । उसे लगा उसकी चोरी पकड़ी गयी । उसके पिता अगर जीवित होते तो इस उम्र में भी उसकी धुनाई किए बिना नहीं छोड़ते ।  दोस्त अगर सुन लेते तो दौड़ा – दौड़ा कर पीटते । कहाँ तो कहा करता था कि शादी न करने के फ़ैसले में टिना का कुछ भी नहीं लेना – देना और साले ने ज़िंदगी के 15 साल उसकी याद ही में काट दिए...। बीमारी उसके दिल में थी और इलाज़ वह ज़िंदगी की कर रहा था और वह भी एक्सपायरी की दवाईयों से !  पगले ने अपने बीमार दिल को ज़रा-सा सम्हालना था और दिमाग़ थोड़ा-सा दौड़ाना था, कब का पता चल जाता उसे कि जिस टिना के इंतज़ार में वह बैठा हुआ है वह न्यूयॉर्क के किसी उपनगर में अपने पति और बच्चों के साथ दस साल पहले ही शिफ़्ट हो गयी है…।
°°°
उसने ज़्यादा देर करना ठीक नहीं समझा । गिलास को मुँह में उड़ेल कर बची हुई कड़वाहट को ख़त्म करने के बाद उसने ज़ल्दी से पिता की तस्वीर को प्रणाम किया और बाथरूम में घुस गया । फ़टाफ़ट तैयार होकर कोर्ट के लिए निकलना जो था । रती अपने बच्चों और उसके दोस्तों के साथ  कोर्ट के बाहर इंतज़ार कर रही थी ऐसे में वह भी देर नहीं करना चाहता था । ख़ुशी अरसे बाद आनेवाली थी, वह पूरी चाहत से उसके गले लगना चाहता था।

°°°


5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 3दिसंबर2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. पगलाया हुआ हाथी और आवारा आशिक काबू में नही आते हैं जल्दी!......वाह क्या उम्दा बयानी है!!

    जवाब देंहटाएं
  3. looking for publisher to publish your book publish with online book publishers India and become published author, get 100% profit on book selling, wordwide distribution,

    जवाब देंहटाएं